शनिवार, 15 अगस्त 2015

आज खुला आसमान टीवी स्क्रीन बन गया है



आज बहुत दिन बाद खुले आसमान के नीचे सोया हूँ। बारिश के मौसम में खुले आसमान के नीचे सोना वैसा नहीं होता जैसा गर्मियों की सुहानी शाम में। आसमान स्याह होता है , और अँधेरे में घुल के अजीब सा रंग. बनता है। नमी जिस्म के चारो तरफ एक परत बनाये रखती है। बारिश के दिनों में सिर्फ बारिश होते ही अच्छी लगती है। ऐसा नमी भरा स्याह मौसम बोरिंग होता है।
घर के अंदर आजु बाजू मोबाइल , टैब , लैपटॉप , सामने बड़ा सा टीवी स्क्रीन। नरम बिस्तर , आराम का सारा साजो सामान। बाहर गाडी , चमचमाती सड़के। शानदार इमारतें। लेकिन आज नमी भरा स्याह बोरिंग मौसम मुझे छत पे ले आया।
आज खुला आसमान टीवी स्क्रीन बन गया है , बीते लम्हों की रोमांचक फिल्म चल रही है।
मैं देख रहा हूँ एक छोटा सा लड़का हरे भरे खेतों के बीच से भागता चला आ रहा है। उसके हाथ में गेंहू से भरा एक कटोरा है , साइकिल पे एक चौकोर डब्बा रखे आदमी खड़ा है। वो लड़का उसे गेहूं देता है और वो आदमी उसे आइसक्रीम , अरे नहीं आइसक्रीम नहीं "मलाई बरफ " मलाई - क्रीम, आइस - बर्फ। संतरे रंग वाली मलाई बर्फ। मैं देख रहा हूँ आम की डाली पर बैठा वो लड़का आइसक्रीम खा रहा है , उसके होठ रंग गए हैं।
मैं देख रहा हूँ , अभी अभी वो लड़का पीतल का ग्लास लिए भागते हुए आँगन से निकला है। उसके पीछे और भी बच्चे ग्लास लिए भाग रहे हैं। भैंस का दूध निकालते बाबा के सामने सबसे पहले गिलास बढ़ाये हड़बड़ी में है , कि कोई और ना आ जाए। थन से सीधे ग्लास में गिरता दूध। एक , दो -तीन, ये भरा -ये भरा, और झाग से भरा ग्लास झपट के मूह में लगता लड़का। दूध से बनी मूछें देख के हँसते बच्चे।
मैं देख रहा हूँ सांय सांय करती गरम हवा चल रही है। सूरज तप रहा है , वो लड़का आम के बाग़ में एक पेड़ के नीचे बैठा आम गिन रहा है। एक आम और, बस एक । ऊपर देख रहा है , और दूसरे पेड़ के नीचे गिरने की टप की आवाज़ से पलटता है। ज़रा सी हवा और पक्का आम ज़मीन पर। मेरे मुँह में उस आम का स्वाद घुल रहा है। अपने आप पक्के और गिरे आम कहाँ मिलते हैं आज।
मक्की के खेत में लड़का भागा जा रहा है , खेत के बीच मचान के नीचे दोस्तों की टोली जमा है , वो आम ले आया है , कोई कच्चे आम काट के मसाला मिला रहा है। कुछ ही देर में सब साफ़ और बिखरे पुआल पे सारे सो रहे हैं। उनकी बंद आँखें , उनकी चलती साँसे , ऐसी नींद, आह उस नींद का एहसास मेरी आँखें बोझिल कर रहा है।
शाम होने को है , कटे हुए गेहूं के खेतो में गेहूं की बालियां बिनता लड़का अब ज़िद्द कर रहा है बाबा से , अनाज का गठ्ठर सर पे रखने के लिए। मानता कहाँ है। देखो सर पे गठ्ठर उठाये चला आ रहा है , गर्दन लचक रही है। धड़ाम से बोझ पटकता है खलिहान में। ओह , कितना हल्का महसूस हो रहा है मुझे।
गाय के बछड़े के सर से सर लगाये बता रहा है उसे, आज क्या क्या किया। ये भी बता रहा है कि उसके लिए नरम नरम घास लाया है। चारा काटने वाली मशीन चलने की आवाज़ आते ही भागता है। उसे लटक लटक के चारा काटने में बड़ा मजा आता है।
हैंडपंप के ठंढे ठंढे पानी से नहा कर अभी अभी आया है। दादी के आँचल में सर पोछ रहा है। माँ डांट रही है। लेकिन परवाह किसे है। चूल्हा जल चूका है , एक छोटी से लड़की आग मांगने के लिए खड़ी है। मोहल्ले में जिसका चूल्हा पहले जलता है , उस से सब आग मांगने आते हैं। आज कहीं ऐसा होता है? आँगन में बैठ के खाना खाता लड़का जल्दी में है। उसने अपने हाथों में एक रोटी छुपा रखी है। इधर उधर देखता है और बाहर की तरफ भागता है। नीम के पेड़ के नीचे काला कुत्ता इंतज़ार में है। देखते ही उछलने लगता है।
तारों से भरे खुले आस्मां के नीचे बिस्तर लग चूका है। सुहानी हवा चल रही है। दादी की गोदी में सर रखे लेटा है , दो कहानियां ख़त्म हो चुकी हैं , लेकिन एक और सुनने की ज़िद्द है। तीसरी कहानी के पूरा होने से पहले वो सो चूका है। आस पास बड़े बड़े घर , खेत खलिहान , बाग़ बगीचे। रात का एक पहर बीत चूका है।
रात को खुले आसमान के नीचे वो लेटा है , मैं भी लेटा हूँ इधर , लेकिन कितना फर्क है।
( साल का एक महीना गावं के नाम होता था। अब उस ज़न्नत को गावं नहीं कुछ लोग प्रॉपर्टी कहते हैं , जो आज भी हमारी है। ठीक ही कहते हैं , प्रॉपर्टी ही तो है , क्यूंकि अब वो लड़का सालो से वहां नहीं गया। बड़ा हो गया है , कहानी लिखता है। )

बुधवार, 24 जून 2015

बस , जो उसने कहा है , करो। सब सही हो जाएगा।

कुछ मत करो।  प्रार्थना मत करो , पूजा मत करो। मंदिर , मस्जिद , गुरूद्वारे , गिरजा मत जाओ। बस उसने जो कहा है , करो।  सब सही हो जाएगा।  उसने कहा , नफरत मत करो , ईर्ष्या मत करो ,भेद भाव मत करो , जात -मजहब  मत देखो। तेरा -मेरा , लड़ाई झगड़ा मत करो।  

तुम कुछ मत करो , बस उसकी ये बातें मान लो।  सब सही हो जाएगा। 

सब मुसलमान हो जाएंगे , अच्छा हो  जाएगा। सब ईसाई हो जाएंगे बढ़िया  हो जाएगा। सब हिन्दू हो जाएंगे तो सब ठीक हो जाएगा। ये तुम्हारी सोच उसके खिलाफ है।  तुम्हारे अलाह के , तुम्हारे भगवान के , तुम्हारे ईसा के।  

ऐसी सोच को अपने जहन से निकाल दो , सब सही हो जाएगा। 

उसे अपने बगीचे में हर रंग का फूल चाहिए। उसे अगर सिर्फ एक रंग चाहिए होता , तो वो एक बार आता , सारी दुनिया को मुसलमान बना के चला जाता। या सारे संसार को हिन्दू या ईसाई बना देता। लेकिन वो कभी मोहम्द बन के आता है।  कभी कृष्णा बन के , कभी ईसा बनके। 

उसके बगीचे के हर रंग से तुम प्यार करना सिख लो , सब सही हो जाएगा।  

उसके लिए क्या मुश्किल है , सबको एक कर देना ? लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। तो तुम सब कौन हो ये सब करने वाले ? किसी पर अपना मजहब , अपनी तहजीब थोपने वाले?  तुम कौन हो , उसके बगीचे के फूलों का रंग बदलने वाले ?

एक दूसरे को कुछ बनाने के लिए तुम सब  दूसरे को मिटा रहे हो।  

ये दखलंदाज़ी बंद कर दो , तो सब सही हो जाएगा। 

बुधवार, 7 अगस्त 2013

आह की उम्र श़बाब पर आई।

आह की उम्र श़बाब पर आई।  
तब ग़ज़ल किताब पर आई।  

आनंद राठौर 

सोमवार, 8 जुलाई 2013

तेरी हंसी का एक कतरा ..और पानी बरसात का .

आधा  टुकरा  चाँद  का  , आधा  तेरी  याद  का ..
जागती  आँखों  में  सपने ..किस्सा  सारी रात  का

हर  कहानी  का  सबब  ,हर  गीत  मेरी  किताब  का
तेरी  हंसी  का  एक  कतरा ..और  पानी  बरसात  का .

गुरुवार, 27 जून 2013

किसान क्या होता है


तपती दोपहर में दमकते सोने से गेहूं की ये बालियाँ ..
देखते ही एक अज्ञात आनंद का एहसास और उन्हें समेट लेने की आरज़ू 
और फिर ..चलती दरांती ..टपकता पसीना . धुल फांकता जिश्म .. 
दर्द से दुखता रोम - रोम ..पल पल बदलता मौसम , 
आसमान में बादल का टुकड़ा डर भर देता है 
तेज होती हवा .. हाथ तेज चलने को मजबूर कर देती है .
पसीना बहता है .. थकान से चूर , फिर भी हाथ चलते हैं ..

कीमत देकर रोटी खाने वालों .. जिस दिन 
अपने हाथ में दरांती उठा के फसल काटोगे ..
धुल फान्कोगे.. बादल – हवा देख के डरोगे.. 
धुप में जलोगे ..
उस दिन तुम जान पाओगे किसान क्या होता है ..रोटी की कीमत क्या है. 
उस दिन समझ पाओगे मेरी कविता का मतलब . 
उस दिन दे पाओगे किसान.. इस अन्न -दात्ता को सम्मान .

c@anand rathore

मंगलवार, 19 मार्च 2013

Dayalbagh Educational Institute - DEI


दयालबाग एजुकेशनल इंस्टिट्यूट - DIE - ये  लाल ईमारत. वर्षों से अपने बुलंद इरादों के साथ खड़ी है. ये आम यूनिवर्सिटी नहीं है. ये वो संसथान है जहाँ भविष्य के होनहारों की गढ़त होती है. महा मानव बनाने की अद्भुत कला यहाँ विकसित हो रही है. और एक दिन इसी इमारत से दुनिया महा मानव निकलते देखेगी.

 इस इमारत के  एक एक पत्थर में परम प्रकाशवान महा पुरषों की चेतनता भरी है. उनके ज्ञान का सार वहां मौजूद है. जो भी वहां जाता है , अगर वो जड़ नहीं है.. ज़रा सा भी चेतन है .उस परम शक्ति की रौशनी का एहसास कर सकता है. जो भी वहां पढता है ,वो वहां के ज्ञान से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता. जो भी यहाँ आया इस से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाया.

इस संस्थान की ऐसी महिमा यहाँ से जुड़े प्रज्ञावान लोगों के अथक प्रयाशों का नतीजा है. बिना प्रचार प्रसार के इस संस्थान ने नाम कमाया है. अपनी योग्यता की वजह से. इस संस्थान से निकले संस्कारी और ज्ञान वान विद्यार्थियों की वजह से इसका नाम हुआ है, जिन्होंने अपने अपने छेत्र में बुलंदियों को छुआ . वहां के लोगों के नेक काम की वजह से इसका नाम है. और इसकी सबसे बड़ी पहचान है - अनूठी , बहुमूल्य शिक्षा का मॉडल. जो दुनिया में कहीं नहीं है.

इस बाग़ से निकले फूलों की  खुशबू से दुनिया को इसकी खबर हुयी. आज के दौर में जहाँ अरबों रुपया खर्च कर के universities अपना प्रचार कर के.. अपना वजूद बनाने की कोशिश में दिन रात लगी हैं.. वहां DEI बिना इस शोर के आगे बढ़ा जा रहा है.

बहुत वहां से पढ़ कर जा चुके और बहुत वहां पढ़ रहे हैं. लेकिन जो भी वहां से जुडा उसके मन में DEI के लिए आपार श्रद्धा है. प्रेम है. बहुत से नए लोग यहाँ आ रहे हैं .. जो इसके बारे में जानते हैं और बहुत से ज्यादा नहीं जानते.  उन्हें जानने की कोशिश करनी चाहिए. ये आम कॉलेज कि तरह एक मामूली कैंपस लग सकता है.. उन्हें जो इसे बाहरी दुनिया से compare करते हैं.. लेकिन जिन्हें ज़रा भी इसकी आत्मा कि भनक है.. वो वहां अपनी ज़िन्दगी बदल सकते हैं.

मेरा ये सब लिखने का एक मकसद है ..और वो ये है कि मैं बताना चाहता हूँ ,  बड़े से बड़ा संकट ..बड़े से बड़ा तूफ़ान इस इमारत पे लगी एक चुने कि परत के हलके से रंग को भी फींका नहीं कर सकता. लेकिन इस संस्थान से जुड़े तमाम लोगों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है जो इसकी गरिमा को ठेस पहुंचाएंगे . जो बिना सोचे समझे इसके नाम का इस्तेमाल अपनी गैर ज़रूरी , गैर वाजिब मकसद के लिए करेंगे.

इस महान संस्थान का नाम किसी भी मकसद के लिए इस्तेमाल करने से पहले आप सब सोचियेगा. सोचियेगा कि आप जो कर रहे हैं उस से आपको क्या हासिल होगा? इस संस्थान को क्या फ़ायदा होगा? अगर आपको लगे कि जो आप इसके नाम पर कर रहे हैं. सही है , तो ज़रूर कीजिये. लेकिन आपकी गैरत , आपका ईमान ज़रा भी डगमगाए तो किसी भी काम में इस नाम का इस्तेमाल हरगिज़ न करें.

सबसे गुज़ारिश है कि इसका नाम सोच समझ कर इस्तेमाल कीजिये...ये याद रहे  इसके नाम के साथ आपका भविष्य ..आपका अस्तित्व जुडा है. ये संस्थान किसी के नाम कि मोहताज़ नहीं है. इसके नाम से आपका काम होता है. इसके ऊपर दाग लगाने का मतलब है अपने ऊपर दाग लगाना. कल इसका नाम आप लेके बहार जायेंगे. दुनिया इसके नाम से आपको जानेगी .. आप जो करेंगे ..वो आपके साथ जाएगा.. सारे जीवन आपके साथ रहेगा...

जो भी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं अगर उन्हें लगता है उन से गलती हुयी है, सुधार ले. और वो सारे जो इस गलती का हिस्सा अनजाने में या जान कर बन रहे हैं वो भी सुधार लें. समझदार को इशारा काफी होता है. हम कई बार अच्चा सोच कर गलत कर बैठते हैं . मुझे उम्मीद है.. मेरे दोस्त , साथी , इस संस्थान से जुड़े लोग.. students सब इस बात का ख्याल रखेंगे. इस महान संस्थान कि  गरिमा बनाये रखेंगे. DIE - मेरी शान ...मेरा नाम.. मेरी जान ..

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

Jagjit Singh sahab- happy birthday

आज जगजीत सिंह साहब का जन्मदिन है. आज तुम फिर बहुत याद आये. पेश है उनकी गयी हुयी पसंदीदा ग़ज़ल


DUNIYA SE DIL LAGA KE DUNIYA SE KYA MILEGA...YAADE-KHUDA KIYE JAA, TUJHKO KHUDA MILEGA..  

https://www.youtube.com/watch?v=ALU1Sao-PNY