शनिवार, 12 जून 2010

दीवाने

बड़े ही गज़ब के दीवाने चले हैं।
ये रोने वाले हंसाने चले हैं।

ज़रा सी हवायों में ये बुझने वाले
तुफानो में शमा जलने चले हैं।

बंजारों की ये जात वाले
जहाँ में बसेरा बसाने चले हैं।

खुद को न समझे जो अबतक अनाड़ी
वो आज हमको समझाने चले हैं।

शुक्रवार, 11 जून 2010

एक पुरानी ग़ज़ल

तुझे अश्यार अच्छे लगते थे ना ?
आके देख आज गजलों की किताब हो गया हूँ ।

तू उलझती थी उन् दिनों मुझे समझने में
आके देख आज आसान सा हिसाब हो गया हूँ।

इस ज़रे को तुने ही तो फूंका था
आके देख आज आफताब हो गया हूँ ।

तेरे हर सवाल में हमेशा खामोश रहा
आके देख आज हर सवाल का जवाब हो गया हूँ।

बुधवार, 9 जून 2010

main muskurahat failane wali jaat ka hoon kabhi rounga nahi..... main jeet ka parcham lahrane wali kaum ka hoon kabhi harunga nahi.... wo rashta jo bheed ki taraf jaata hai...mera nahi hai... main khona nahi chahta , uss taraf gaya to kho jaunga... mushkil hi sahi sachchayi ka rasta ...koi saath de ya na de... main ussi par chalunga....Akela hi sahi

मंगलवार, 8 जून 2010

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अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो- क्यूँ?

लता जी का इंटरविउ देख रहा था । इतनी बुलंदी पर पहुँचने के बाद भी , मैं उनके मुह से ये बात सुन कर हैरान हुआ, की अगर उन्हें अगला जन्म मिले तो वो लड़की नहीं बनना चाहेंगी। बहुत सोचा, तो समझ आया , ये हम सबको सोचना होगा , की आखिर ऐसा क्यूँ?
अन्तरिक्ष की बुलंदियां छूने और समंदर की गहराईयाँ नापने के बाद ….दुनिया के बड़े से बड़े मुकाम को हासिल करने के बाद भी. ..क्या वजह है जो आज भी औरतें भगवान से प्रार्थना करती हैं ….कहती है ….कंकड़ की जो ..पत्थर की जो …अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजो …क्यूँ ? इस सोच की वजह तलाशनी होगी …। दुनिया को चलने वाली इस शक्ति की इस पीड़ा की वजह को जानना होगा.

हज़ारों जहमते उठती …।
बर्तन धोती …घर बुहारती …
चारा काटती …इंधन जुटती .
सास ससुर के ताने सुनती .
वो मुस्कुराती है …..
उसके काम को काम नहीं समझा जाता …
उसके अस्तित्व का कोई वजूद नहीं …
अपने अधिकारों से वंचित ..
वो मुस्कुराती है …
हाँ ... ये बेटियां,ये
माँ ..ये बहन ..ये पत्नियाँ ...
ये औरत ...
इस जीवन का आधार ॥
सब कुछ सहते हुए ...ये हंसती हैं .
और ..इसीलिए बची हुयी है दुनिया ...
क्यूंकि ..ये हंसती हैं .

सोमवार, 7 जून 2010

मेरा सम्मान

मैं दलित ,, सदियों से दबा कुचला ।
लेकिन आज सत्ता में मेरा शाशन है ।
आज राजा –रानी मेरे हैं ..मेरा ही दीवान है ।
मेरे रहनुमा करेंगे अब मेरा सम्मान
बनेगी भीमकाय मूर्तियाँ .
सजेंगी बगीचों में जल की फुलझड़ियाँ
मेरा होगा सम्मान ..बढेगा मेरा मान .
छब्बीस रुपये भी दिन में नहीं कम पता मैं ..
लेकिन छब्बीस सौ करोड़ से मेरा होगा सम्मान .
हे भारत के संविधान के रक्ष्सको ..क्यूँ रोकते हो तुम
हो जाने दो मेरा सम्मान …
मैं चाहता हूँ , मैं रहूँ या न रहूँ ..
कायम रहे इन् शिलायों में मेरी पहचान ..
बहुत ज़रूरी है बनी रहे मेरी पहचान
मेरी नस्लों को दुःख सहने की ताक़त मिलती है …
उन्हें होसला मिलता है , हो जाने को कुर्बान .
ताजमहल मुमताज़ की याद में बनाया गया था सब जानते हैं ॥
लेकिन मेरे बच्चे उससे अपने पूर्वजों के कटे हाथों का प्रतिक मानते हैं .
एक और प्रतीक बन जाने दो .. बनी रहेगी मेरी पहचान .
मैं चाहता हूँ, मेरे शोषण की कहानी जिंदा रहे
मुझ पर हुए अत्याचार का बन जाने दो निशान
मेरे उत्थान के नाम पर ये सम्मान ..
जान ले दुनिया मेरे नेता हैं महान .
जिन्हें पता नहीं मुझे ये सम्मान नहीं ...चाहिए दो मुठी अन्न का दान .
उन्हें पता नहीं …भूख से व्याकुल मेरे टंगे हैं प्राण .
झोपड़े में जलता हूँ -भीगता हूँ , नहीं है एक माकन .
क़र्ज़ में डूबा हूँ , बेटी हो गयी है जवान .
बाप बिना इलाज़ के मर गया …माँ पर भी बीमारियाँ है मेहरबान .
मेरे उठान का वादा करने कितने आये …
और शोषण कर के चले गए ॥
लेकिन मेरे अपने मेरे सम्मान के नाम पर
बना रहे हैं मेरे शोषण का निशान .
जनता हूँ , मेरी दर्दनाक आवाज़ दबा दी जाएगी
अख़बार के पन्नो से चाय की प्याली के साथ मिटा दी जाएगी
मेरे नाम पर शीश महल बनवाने वालों ..
कभी सोचा है ..उस महल को देखने आने के लिए
मेरी जेब में किराये भी नहीं हैं ..
होते तो बरोसों से इंतज़ार करती बहन को देख आया होता .
लेकिन जान लो …तुम चैन की सांस नहीं ले पाओगे एक पल भी उस आलीशान नुमाईश का …
देखना वहां … उन् मूर्तियों में
तुम्हे मेरे पसीने , मेरे लहू के मिलेंगे निशान
एक एक पत्थर में नज़र आएगा तुम्हे
मेरी बेटी के शादी के पैसे
मेरे बेटे की पढाई के पैसे
मेरी माँ की दवाई के पैसे
और मेरी कफ़न की बू आएगी ..तुम देखना मेरी शान …
चल मंगरुया …हल उठा … जोते बोयें ..करम करें …बाकी सब जाने राम जी …