कभी कहीं पढ़ा था , याद नहीं कहाँ , मौलाना रूमी की एक किताब हाथ लगी थी , हाँ याद आया , किताब का नाम था, मौलाना रूमी और सूफी फकीरों की कहानिया। किताब के पहले पन्ने पे लिखा था , हम उस खुदा का सजदा करते हैं , जिसने दुनिया वालों के खुदा को बनाया है। उनके वक़्त के तमाम सूफी फकीरों की दास्तान थी उन् में। पढ़ कर बहुत सिखने को मिला और ताजुब भी हुआ की कैसे कैसे लोग इस दुनिया में आये हैं। उस्सी किताब में रजब नाम से मशहूर एक फकीर का किसा पढ़ा , उनके गुरु का नाम भूल गया , लिखा था, रज़ब के गुरु सूफी फकीर थे और वो जहाँ भी जाते थे, माएं अपने जवान बच्चों को घर में छुपा लेती थी। उनकी आँखों में एक ऐसी कशिश थी की जिससे भी टकरा जाएँ वो उनका दीवाना हो जाता था। उनकी रूहानियत भरी आँखें उससे खींच लेती थी। और बंद दुनिया से नायार हो जाता था। एक बार वो रज़ब के गाँव से गुज़रे। रज़ब शेहरा सजाये घोड़ी पे बैठे , गाजे बाजे के साथ अपनी बारात लिए जा रहे थे। कहते हैं रज़ब को एक लड़की से मोहबत थी , लेकिन दोनों के खानदान में जाती दुश्मनी सदियों से चलती आ रही थी। बहुत कोशिशों और के बाद आखिर मोहबत की जीत हुयी और दोनों खानदानों ने दुश्मनी भुला कर उन्हें निकाह की इज्ज़ाज़त दे दी। आज उनकी मुराद पूरी होने वाली थी। आज प्यार उनका मंजिल पाने जा रहा था। लेकिन होना तो कुछ और ही था। रज़ब के गुरु अचानक आ गए । सब ने आँखें पलट ली की कहैं ये दीवाना फकीर उन्हें देख न ले। लेकिन रज़ब ने शेहरा हटा के देख ही लिया । नज़रे नज़रों से मिली और रज़ब देखता ही रह गया। मस्त फकीर ने कहा। "रज़ब कियो गज़ब , सर पे बंधा मौर । आया था हरी भजन को , चला नरक की ठौर " बस इतना ही कहा। और रज़ब उनके पीछे हो लिया। बाप भाई , यार दोस्त समझाते रह गए । उन्होंने एक न सुनी। माशूका के संदेशे , उसके आंसू भी उन्हें रोक नहीं पाए। कहते हैं रज़ब के गुरु ने जब चोला छोड़ दिया और इस दुनिया से कूंच कर गए। रज़ब ने आँखें बंद कर ली। और मरते दम तक नहीं खोली। कहते थे, जिनको देखता था अब वो दुनिया में नहीं है। खुली आँखों से वो दीखता नहीं। बंद आँखों से दीखता है।
मौलाना रूमी की भी एक रुबाई थी जिस में लैला और मजनू का जिक्र था । अब यहाँ सवाल उठता है , लैला मजनू का किस्सा पुराना है या रूमी साहब का? खैर इतिहास में झाँक कर देखा नहीं। वैसे रुबाई बड़ी दिलचस्प है। लिखा है। एक खुमकड़ विद्वान लैला मजनू के प्रेम की कहानिया सुन कर लैला के पास आया। की आखिर लैला क्या बाला है, जो कैश (मजनू ) जैसा सुन्दर बांका जवान लैला पे कुर्बान है। आखिर ये हसीना है कौन? लेकिन जब लैला को देखा तोह , दंग रहा गया। कहते हैं, लैला बहुत खूबसूरत नहीं थी। वो लैला से बोला ।
कैश (मजनू ) को तुने कैसे परेशां किया , तू हसीनो में कोई अफजूं नहीं।
लैला बोली
खामोश तू मजनू नहीं ।
लिखा है लैला को देखने के लिए मजनू की आँखें चाहिए ।
ब्लाग जगत में आप का स्वागत है।
जवाब देंहटाएंलोगों में मुस्कान फैलाते रहिए।
ये शब्द पुष्टिकरण हटाइये वर्ना टिप्पणियों का अकाल रहेगा।
bahut bahut shukriya
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