कुछ मत करो। प्रार्थना मत करो , पूजा मत करो। मंदिर , मस्जिद , गुरूद्वारे , गिरजा मत जाओ। बस उसने जो कहा है , करो। सब सही हो जाएगा। उसने कहा , नफरत मत करो , ईर्ष्या मत करो ,भेद भाव मत करो , जात -मजहब मत देखो। तेरा -मेरा , लड़ाई झगड़ा मत करो।
तुम कुछ मत करो , बस उसकी ये बातें मान लो। सब सही हो जाएगा।
सब मुसलमान हो जाएंगे , अच्छा हो जाएगा। सब ईसाई हो जाएंगे बढ़िया हो जाएगा। सब हिन्दू हो जाएंगे तो सब ठीक हो जाएगा। ये तुम्हारी सोच उसके खिलाफ है। तुम्हारे अलाह के , तुम्हारे भगवान के , तुम्हारे ईसा के।
ऐसी सोच को अपने जहन से निकाल दो , सब सही हो जाएगा।
उसे अपने बगीचे में हर रंग का फूल चाहिए। उसे अगर सिर्फ एक रंग चाहिए होता , तो वो एक बार आता , सारी दुनिया को मुसलमान बना के चला जाता। या सारे संसार को हिन्दू या ईसाई बना देता। लेकिन वो कभी मोहम्द बन के आता है। कभी कृष्णा बन के , कभी ईसा बनके।
उसके बगीचे के हर रंग से तुम प्यार करना सिख लो , सब सही हो जाएगा।
उसके लिए क्या मुश्किल है , सबको एक कर देना ? लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। तो तुम सब कौन हो ये सब करने वाले ? किसी पर अपना मजहब , अपनी तहजीब थोपने वाले? तुम कौन हो , उसके बगीचे के फूलों का रंग बदलने वाले ?
एक दूसरे को कुछ बनाने के लिए तुम सब दूसरे को मिटा रहे हो।
ये दखलंदाज़ी बंद कर दो , तो सब सही हो जाएगा।