मेरे फ्लैट की खिड़की से सागर दिखता है॥
धरती से मिलता ये अम्बर दिखता है॥
टीम टीम करते आते हैं चंदा -तारे
झिलमिल झीलमिल सारा शहर दिखता है।
सच बादल में बनता है क्या रूप तुम्हारा
या ये मौसम का असर दिखता है।
रिम झिम बादल जैसा मेरा मन
सपनो का नम सारा मंजर दिखता है।
भरा पड़ा है घर मेरा दुनिया के सामान से
तुम बिन लेकिन सबकुछ मुझको कम दिखता है.
लाखो सुरज हो जाएँ शर्मिंदा जैसे
जब मुझको मेरा अंतर दिखता है .
खूबसूरत यात्रा - बाहरी जगत से ताल मिलाती अंतर्यात्रा।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना ....
जवाब देंहटाएंA beautiful composition...very thought provoking!
जवाब देंहटाएंशुभ दीपावली,
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