गुरुवार, 6 सितंबर 2012

ज़िन्दगी का पेड़

ज़िन्दगी का पेड़ 

मेरे घर के सामने एक पीपल का पेड़ है. 
लेकिन इसे देखता हूँ तो लगता है 
ये ज़िन्दगी का पेड़ है. 

ये हजारों रंग बदलता है
ये इन्सान से कम नहीं , जो हालात के साथ बादल जाता है
उस पर जब हरी हरी पत्तियां भर जाती हैं
उसका यौवन खिल उठता है

जब उसके पास गुलरों की भरमार होती है
वो हवा में अठखेलियाँ करता है.
उसके पास आने वालों का मेला लगा रहता है.
हजारों राही उसकी छावं में आराम करते हैं..
सैकड़ो पंछी ,रंग बिरंगे
उस पे झूलते हैं ..उस से कुछ लेने को तत्पर दिखते हैं
दिन रात उसका साथ निभाते हैं.
पीपल का पेड़ सबको अपना समझ इतराता सा दिखता है.

आज सर्दियों में इसकी पत्तियां पिली पड़ गयी हैं.
एक हवा के झोंके के साथ सैकड़ो पत्तियां गिर जाती हैं.
जितना वह संवरा हुआ था, उतना ही उजड़ता जा रहा है
आज ठूंठ सा खड़ा है.. सुनी सुनी आँखों से घूर रहा है
मानो अतीत में हो , यादों के सिवा उसका कोई नहीं
आज उस पर एक भी पंछी नहीं है.
एक भी राही उसकी तरफ नहीं देखता
सब उसका साथ छोड़ चुके हैं

कोई नज़र भी आता है तो काम से ..
इस पेड़ को देख कर ज़िन्दगी का माने कितने करीब से समझ पाया
सभी इन्सान एक पीपल का पेड़ होते हैं
उसकी हरियाली में सब उसके पास होते हैं
उजड़ जाएँ जहान , गम झा जाए , तो सभी छोड़ जाते हैं.

C@Anand Rathore from school diary

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