सुबह हो चुकी है , चाय बन चुकी है . चाय की चुस्कियों के बीच हाथ चल रहे हैं .. लिख रहा हूँ ..सोच रहा हूँ … ये धरती चक्कर लगाती हुयी क्यूँ रात दिन बनाती है ?…कुछ भी तो नहीं बदला मेरे कमरे में .. वक़्त की इस रफ़्तार ने मुझे न पीछे धकेला न आगे ..मैं वहीँ हूँ पिछले 24 घंटो से ..शायद अब मुझ में कुछ जोड़ना घटाना मुमकिन नहीं रहा . अच्छा है , ज़िन्दगी में ठहराव का आना … ख़ामोशी और सिर्फ तुम्हारा होना ..अच्छा है .. रात दिन बनते रहे.ज़िन्दगी चलती रहे ..उसे रुक कर देखना अच्छा है .
ज़िन्दगी चलती रहे....
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