गुरुवार, 27 जून 2013

किसान क्या होता है


तपती दोपहर में दमकते सोने से गेहूं की ये बालियाँ ..
देखते ही एक अज्ञात आनंद का एहसास और उन्हें समेट लेने की आरज़ू 
और फिर ..चलती दरांती ..टपकता पसीना . धुल फांकता जिश्म .. 
दर्द से दुखता रोम - रोम ..पल पल बदलता मौसम , 
आसमान में बादल का टुकड़ा डर भर देता है 
तेज होती हवा .. हाथ तेज चलने को मजबूर कर देती है .
पसीना बहता है .. थकान से चूर , फिर भी हाथ चलते हैं ..

कीमत देकर रोटी खाने वालों .. जिस दिन 
अपने हाथ में दरांती उठा के फसल काटोगे ..
धुल फान्कोगे.. बादल – हवा देख के डरोगे.. 
धुप में जलोगे ..
उस दिन तुम जान पाओगे किसान क्या होता है ..रोटी की कीमत क्या है. 
उस दिन समझ पाओगे मेरी कविता का मतलब . 
उस दिन दे पाओगे किसान.. इस अन्न -दात्ता को सम्मान .

c@anand rathore

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