शुक्रवार, 11 जून 2010

एक पुरानी ग़ज़ल

तुझे अश्यार अच्छे लगते थे ना ?
आके देख आज गजलों की किताब हो गया हूँ ।

तू उलझती थी उन् दिनों मुझे समझने में
आके देख आज आसान सा हिसाब हो गया हूँ।

इस ज़रे को तुने ही तो फूंका था
आके देख आज आफताब हो गया हूँ ।

तेरे हर सवाल में हमेशा खामोश रहा
आके देख आज हर सवाल का जवाब हो गया हूँ।

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