कैसे कैसे ख्वाब लिए मैं इन सड़कों पे घूमता हूँ.
ज़मी पे कदम हैं मगर आसमां को चूमता हूँ .
कितना भी दुस्वार क्यूँ न हो काम वही करता हूँ.
दिन को चाँद रातों को सूरज ढूंढता हूँ.
नाकामयाब होता हूँ , लेकिन नाउमीद नहीं.
मेरे दिल में एक खुदा है, हर ठोकर पे उसे पूजता हूँ.
ज़िन्दगी से खफा हो के जाएँ कहाँ
कभी राजी , तो कभी इसी से रूठता हूँ.
ज़िन्दगी के कुछ प्याले ज़हर थे , अमृत समझ के पी गया।
अब न जीता हूँ , न मैं मारता हूँ.
रविवार, 14 नवंबर 2010
मंगलवार, 9 नवंबर 2010
सोमवार, 8 नवंबर 2010
रविवार, 7 नवंबर 2010
इस दिवाली पर बड़ा मजा आया
इस दिवाली पर बड़ा मजा आया
मैं पठाखे नहीं , एक सुंदर सी कलम ले आया था ।
दिए नहीं एक प्यारी सी डायरी ले आया था ।
कहीं नहीं गया, न कोई मिठाई लाया था।
दुनिया के सारे दरवाज़े बंद किये।
ब्लॉग बंद , इमेल बंद, मोबाइल बंद, कमरा बंद ।
खुला रखा तो सिर्फ एक दरवाज़ा , दिल का दरवाज़ा।
अँधेरे बंद कमरे में बैठा ।
डायरी का पहला पन्ना खोला ।
लिखा- रोशनी ...
जग मग रोशनी से सारा कमरा जगमगा उठा ।
टिमटिमाते दिए कमरे में इतराने लगे।
फिर लिखा - मिठाई
मुह मिठास से भर आया ।
पकवान मन को लुभाने लगे।
मेरी नजरो ने दरवाजों को इशारा किया
दरवाज़े खुले , तुम आये , वो आये, सब आये ।
खुशियों का आलम आया।
सबको विदा किया , दरवाज़ा फिर बंद।
मैं बाहर से सो गया, अन्दर से जाग गया ।
रूह रोशन हुयी , प्रेम का रास हुआ ।
राम की विजय हुयी , रावण को वनवास हुआ ।
जब कमरे से बाहर आया , मैं वो नहीं था, मैं बिलकुल नया ।
उस कमरे में मैं अपना दिल जला आया था।
अब की दिवाली पे बड़ा मजा आया था।
मैं पठाखे नहीं , एक सुंदर सी कलम ले आया था ।
दिए नहीं एक प्यारी सी डायरी ले आया था ।
कहीं नहीं गया, न कोई मिठाई लाया था।
दुनिया के सारे दरवाज़े बंद किये।
ब्लॉग बंद , इमेल बंद, मोबाइल बंद, कमरा बंद ।
खुला रखा तो सिर्फ एक दरवाज़ा , दिल का दरवाज़ा।
अँधेरे बंद कमरे में बैठा ।
डायरी का पहला पन्ना खोला ।
लिखा- रोशनी ...
जग मग रोशनी से सारा कमरा जगमगा उठा ।
टिमटिमाते दिए कमरे में इतराने लगे।
फिर लिखा - मिठाई
मुह मिठास से भर आया ।
पकवान मन को लुभाने लगे।
मेरी नजरो ने दरवाजों को इशारा किया
दरवाज़े खुले , तुम आये , वो आये, सब आये ।
खुशियों का आलम आया।
सबको विदा किया , दरवाज़ा फिर बंद।
मैं बाहर से सो गया, अन्दर से जाग गया ।
रूह रोशन हुयी , प्रेम का रास हुआ ।
राम की विजय हुयी , रावण को वनवास हुआ ।
जब कमरे से बाहर आया , मैं वो नहीं था, मैं बिलकुल नया ।
उस कमरे में मैं अपना दिल जला आया था।
अब की दिवाली पे बड़ा मजा आया था।
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