इस दिवाली पर बड़ा मजा आया
मैं पठाखे नहीं , एक सुंदर सी कलम ले आया था ।
दिए नहीं एक प्यारी सी डायरी ले आया था ।
कहीं नहीं गया, न कोई मिठाई लाया था।
दुनिया के सारे दरवाज़े बंद किये।
ब्लॉग बंद , इमेल बंद, मोबाइल बंद, कमरा बंद ।
खुला रखा तो सिर्फ एक दरवाज़ा , दिल का दरवाज़ा।
अँधेरे बंद कमरे में बैठा ।
डायरी का पहला पन्ना खोला ।
लिखा- रोशनी ...
जग मग रोशनी से सारा कमरा जगमगा उठा ।
टिमटिमाते दिए कमरे में इतराने लगे।
फिर लिखा - मिठाई
मुह मिठास से भर आया ।
पकवान मन को लुभाने लगे।
मेरी नजरो ने दरवाजों को इशारा किया
दरवाज़े खुले , तुम आये , वो आये, सब आये ।
खुशियों का आलम आया।
सबको विदा किया , दरवाज़ा फिर बंद।
मैं बाहर से सो गया, अन्दर से जाग गया ।
रूह रोशन हुयी , प्रेम का रास हुआ ।
राम की विजय हुयी , रावण को वनवास हुआ ।
जब कमरे से बाहर आया , मैं वो नहीं था, मैं बिलकुल नया ।
उस कमरे में मैं अपना दिल जला आया था।
अब की दिवाली पे बड़ा मजा आया था।
ला-जवाब" जबर्दस्त!!
जवाब देंहटाएंसार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंदिलजलों की दीवाली भी अलग, अंदाज भी अलहदा।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत लिखा है आनंद जी। बधाई एवम शुभकामनायें, खुद को खोजने की तलाश मुकम्मल हो आपकी।
मैं बाहर से सो गया.... अंदर से जाग गया..... सच में दिवाली तो यही होती है....
जवाब देंहटाएंबहुत अर्थपूर्ण
mujh me itni samajh nahi ki apki rachnaon ke liye kuchh kahu. bas yahi kahungi ki padh kar achha lagta hai.
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