कैसे कैसे ख्वाब लिए मैं इन सड़कों पे घूमता हूँ.
ज़मी पे कदम हैं मगर आसमां को चूमता हूँ .
कितना भी दुस्वार क्यूँ न हो काम वही करता हूँ.
दिन को चाँद रातों को सूरज ढूंढता हूँ.
नाकामयाब होता हूँ , लेकिन नाउमीद नहीं.
मेरे दिल में एक खुदा है, हर ठोकर पे उसे पूजता हूँ.
ज़िन्दगी से खफा हो के जाएँ कहाँ
कभी राजी , तो कभी इसी से रूठता हूँ.
ज़िन्दगी के कुछ प्याले ज़हर थे , अमृत समझ के पी गया।
अब न जीता हूँ , न मैं मारता हूँ.
khubsurat rachna aur behtar prastuti. aabhar.
जवाब देंहटाएंवाह ...सकारात्मकता और उर्जा बिखेरती बहुत ही सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंअंतिम शेर को थोडा सा और संवार लें तो क्या बात होगी...बाकी सभी शेर लाजवाब हैं...
तीसरा शेर सबसे ज्यादा पसंद आया...... बेहतरीन
जवाब देंहटाएंsabko shukriya... ranjana ji koshish karunga..
जवाब देंहटाएंवाह आनंद जी, इसी खूबसूरत जज़्बे के तो हम कायल है। दिन को चाँद और रात में सूरज को ढूंढना, नाकामयाब लेकिन नाउम्मीद नहीं, बहुत अच्छी रचना है अपकी
जवाब देंहटाएंkhoobsurat nazm.........
जवाब देंहटाएंgahre bhavon se bhari gazal...........
जवाब देंहटाएंएक उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंअमां हजरत, कहाँ गायब हो?
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