अनसन नहीं अब रण होगा जंतर मंतर बहुत हुआ , अब अगला अड्डा परिलिअमेंट होगा .
अनसन नहीं अब रण होगा
जंतर मंतर बहुत हुआ , अब अगला अड्डा परिलिअमेंट होगा .
शनिवार को आन्दोलन से वापस आया तो अरविन्द केजरीवाल की हालत देख कर दुखी हुआ. सरकार की मनसा साफ़ झलक रही थी. बहुत सोचा और सोमवार को कुमार विश्वास को ये सन्देश भेजा . आज जंतर मंतर पर जो हुआ लगता है सब यही चाहते हैं और यही रास्ता भी बचा है. आप क्या राय रखते हैं , ज़रूर बताइए.
प्रिय कुमार विश्वास
अभी आन्दोलन के बारे में सोच रहा था की मुझे एक ख्याल आया, इन चोरों से इन्ही के खिलाफ क़ानून बनवाने की मांग ठीक वैसे ही है , जैसे भैंस के आगे बिन बजाना, ये डरेंगे , घबराएंगे , लेकिन करेंगे कुछ नहीं. फिर समाधान क्या है? इनका सफाया ही समाधान है . सत्ता से सम्पूर्ण रूप से इनका सफाया. और इसके लिए हमे २०१४ के चुनाव तक इंतज़ार करना पड़ेगा.
हमे थोड़ा गहराई से सोचने की ज़रूरत है और उसी हिसाब से निति बनाने की ज़रूरत है. मैं राजनीति में जाने के खिलाफ हूँ , लेकिन इस बात से इनकार नहीं करता की राजनीती में अच्छे लोगों का आना ज़रूरी है. अच्छे लोग होंगे तो जनता की सुनेगे. मान लीजिये २०१४ के चुनाव में कांग्रेस का सफाया भी कर दिया तो कोई और सरकार आएगी , वो हमसे डरेगी ज़रूर लेकिन कोई गारेंटी नहीं है की भ्रष्टाचार नहीं करेगी.
हमे रणनीति बनानी होगी , हमारा लहू पानी नहीं है जो बलिदान भी हो जाए और अंजाम तक भी न पहुंचे. मुझे पुरा यकीं है ये सरकार कुछ करने वाली नहीं है. आदमी कितना भी गिरा हो उसे आप कहें खुद फांसी का फंदा अपने गले में लगा ले , वो कभी ऐसा नहीं करेगा , फिर ये आदमी नहीं दरिन्दे हैं. इस तरफ टकराव की स्थिति आएगी और मुझे डर है जनता का नुकसान हो सकता है.
हमे इस दीप को जलाये रखना होगा २०१४ तक , इनके अंत की तैयारी करते रहनी होगी. चुनाव में इनका एक भी आदमी जितने न पाए . लेकिन हमे सुनिश्चित करना होगा , की इनकी जगह जो लोग चुन कर आयें , जो सरकार बने , अच्छी बने. इस तरफ हमे सोचने की ज़रूरत है. आज अनसन को ६ दिन हो गए. ये अन्दर से डरे हुए तो हैं , लेकिन कोई फैसला नहीं करेंगे . आप सब हमारे लिए बहुमूल्य हैं. देश के लिए बलिदान देने से मुझे डर नहीं , लेकिन हमारी लडाई गोरों से नहीं , काले अंग्रेजों से है. धूर्त , मक्कारों से है.. हमे चाणक्य निति की ज़रूरत है , नहीं तो हमारा बलिदान बेकार जाएगा. शहीद भगत सिंह के बम से अँगरेज़ दहले थे, लेकिन गाँधी जी के सोची समझी निति और सत्याग्रह आन्दोलन ने उन्हें देश छोड़ने पर मजबूर किया. बलिदान की भावना होनी ज़रूरी है लेकिन विवेक के साथ हो तो कामयाबी ज़रूर मिलेगी.
हमे मिलकर सोचना होगा , और हर मोर्चे पर सबका विश्वास लेकर एक निति बना के काम करना होगा. कहीं गरम , कहीं नरम होना होगा . तभी हम कामयाब हो पायेंगे.
कृपया सोचियेगा और आपस में सब से विचार कीजियेगा , मेरी कभी भी कहीं भी ज़रूरत हो तो मैं हाज़िर हूँ .
शुक्रिया
आपका शुभाकांशी
आनंद राठौर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें