टूटे -फूटे लोग मिले मुझे राहों में , चौराहों पे .
बुत्त बन के खामोश खड़े कुछ शहरों के चौराहों पे
बनने की चाहत में बिगड़े ..कुछ बन के बर्बाद हुए .
वक़्त के संग बनते - बिगड़ते …. बेदम खड़े दोराहों पे .
तेरा मेरा इसका उसका , जकड़े ख्वाइशों की जंजीरों में
लिबास लपेटे आज़ादी का .. मुझे गुलाम मिले चौराहों पे ..
भागता भगवान देखा , शैतान बना इंसान देखा
सच्चाई को सूली पे देखा हर गली चौराहों पे .
c@anand rathore
खरी खरी ...सधी हुयी अभिव्यक्ति
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