शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2012

टूटे -फूटे लोग मिले मुझे राहों में , चौराहों पे


टूटे  -फूटे  लोग  मिले  मुझे  राहों  में , चौराहों  पे .

बुत्त बन  के  खामोश  खड़े  कुछ  शहरों  के  चौराहों  पे

बनने की  चाहत  में  बिगड़े ..कुछ  बन  के  बर्बाद  हुए .

वक़्त  के  संग  बनते  - बिगड़ते …. बेदम   खड़े  दोराहों  पे .

तेरा  मेरा  इसका  उसका  , जकड़े  ख्वाइशों की  जंजीरों  में

लिबास  लपेटे  आज़ादी  का .. मुझे  गुलाम  मिले  चौराहों  पे ..

भागता  भगवान देखा  , शैतान  बना  इंसान  देखा

सच्चाई  को  सूली  पे  देखा  हर  गली  चौराहों पे .

c@anand rathore

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