गुरुवार, 30 सितंबर 2010

अमन में मेरा हिंदुस्तान रहे

ना राम रहे न अलाह रहे।
जिनको रखना हो , वो अपने दिल में अपना भगवान रखें।
ये धरती है इंसानों की, यहाँ सिर्फ इन्सान रहे।
प्रेम का मजहब रहे, अमन में मेरा हिंदुस्तान रहे।

१९९२ से न तो वहां मंदिर हैं, न वहां मस्जिद है। हिंदुस्तान की अवाम को कोई फर्क नहीं पड़ा। इस दुनिया में अगर कहीं मंदिर , मस्जिद, गुरद्वारा, गिरजा घर न हो , तब भी इन्सान को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। फर्क तब पड़ता है, जब अमन चला जाता है। जब नफरत की हवा जहर घोलती है।

ढह जाएँ जब मासूमो के घर , तब मंदिर की नीव पड़े ।
माँ का दूध सूख जाए तब ईद की खीर बने ।

ऐसे मंदिर मस्जिद नहीं चाहिए हम इंसानों को ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें