शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

अमन में मेरा हिंदुस्तान रहे

इस देश में जब जिसके हाथ ताक़त आई उसने राज किया । ये सिर्फ हमारे देश की कहानी नहीं है , सारी दुनिया का यही इतिहास है। अयोध्या में मंदिर था या मस्जिद था , कब क्या था , कोई दावे से कह नहीं सकता। किसी के पास कोई सबूत नहीं है। लेकिन इतिहास में मैंने तो आज तक ऐसा नहीं पढ़ा की किसी हिन्दू ने मस्जिद पे कब्ज़ा किया हो। या उसे गिरा कर मंदिर बना दिया हो। इतिहास में मैंने ये ज़रूर पढ़ा है की मुग़ल शाशकों ने ये घिनोना काम किया। मेरे यह कहने का मतलब कतई नहीं है की मैं ये कह रहा हूँ , की वहां मंदिर गिरा कर मस्जिद बनाया गया। या मस्जिद गिरा कर मंदिर बनाने की कोशिश हुयी। सिर्फ ये कहना चाहता हूँ , की किसी को कुछ पता नहीं। कोई ये साबित भी नहीं कर पाया। और अगर हम में से किसी को लगता है , कि अमन के लिए फैसला इन्साफ नहीं , तो ये सच है। लेकिन हम कह भर सकते हैं, क्यूंकि हम कहने वालों के पास भी कोई पका सबूत नहीं है। इस में कोई दो राय नहीं है कि , फैसला इन्साफ नहीं था, एक समझौता है। अमन के नाम पर। इस में न्याय कि जीत नहीं हुयी। इस फैसले से देश में अमन बनाये रखने में कामयाबी मिली। न्यायपालिका ने एक अच्छा फैसला लिया , जो देश कि शान्ति के लिए ज़रूरी था, लेकिन ध्यान रखना होगा , कि और मामलो में ऐसे फासले न दिए जाएँ। ये कानून कि हार होगी।

वैसे मैं अयोध्या मामले और ऐसे मंदिर मस्जिद के नाम पर होने वाले झगड़ों के लिए बस इतना कहूँगा और पूछुंगा कि आप क्या सोचते हैं?

अमन में मेरा हिंदुस्तान रहे

ना राम रहे न अलाह रहे।
जिनको रखना हो , वो अपने दिल में अपना भगवान रखें।
ये धरती है इंसानों की, यहाँ सिर्फ इन्सान रहे।
प्रेम का मजहब रहे।
अमन में मेरा हिंदुस्तान रहे।

१९९२ से न तो वहां मंदिर हैं, न वहां मस्जिद है। हिंदुस्तान की अवाम को कोई फर्क नहीं पड़ा। इस दुनिया में अगर कहीं मंदिर , मस्जिद, गुरद्वारा, गिरजा घर न हो , तब भी इन्सान को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। फर्क तब पड़ता है, जब अमन चला जाता है। जब नफरत की हवा जहर घोलती है। गरीबों का खुदा एक रोटी में बंद हैउसकी मेहनत मजदूरी उसकी पूजा हैशाम को घर में जलता चूल्हा उसका हवन हैऔर उसके बच्चों के मुह में जाने वाला निवाला उसका प्रसाद हैकहीं मंदिर हो या हो, कहीं मस्जिद हो या होउसे कोई फर्क नहीं पड़ता

ढह जाएँ जब मासूमो के घर , तब मंदिर की नीव पड़े ।
माँ का दूध सूख जाए तब ईद की खीर बने ।

ऐसे मंदिर मस्जिद नहीं चाहिए हम इंसानों को ।

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