शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2010

ये सूनापन ये रीतापन

काम है , आराम है.
थोड़ा नाम है , थोड़ा बदनाम हैं.
वक़्त पे खाना , वक़्त पे सोना
कुछ कम है तो कुछ ज्यादा भी है.
कुछ कर चुके , कुछ करने का इरादा भी है.
डर है , हौसला भी है.
बहुत कुछ पास है , कुछ से फासला भी है
खुशियाँ हैं तो कहीं मातम भी है.
सांस चल रही हैं
ज़िन्दगी बढ़ रही है.
देखता हूँ , लगता है जैसे
जिंदगी जहाँ से चली थी उसी ओर बढ़ रही है.
जब तक दम है ..हम हैं .
सब कुछ होते हुए भी
एक सूनापन , एक रीतापन भी है ।
ये सूनापन पहले असहज कर देता था
फिर उधेलित करने लगा
फिर सोचने पर मजबूर करने लगा
अब सोचता हूँ , तो जानता हूँ
यहाँ कुछ भी पूरा नहीं है , सब अधुरा है
ये सूनापन ये रीतापन एक वजह है
ज़िन्दगी को एक नयी दिशा देने के लिए
ये वो इशारा है जो दिखता है एक रास्ता
जीवन के अंतिम सत्य ,मृत्यु का
निर्वाण का , मोक्ष का .
ये सूनापन ..ये रीतापन जब आये जीवन में
तुम भी सोचना , और निकल पड़ना
एक नयी राह पर .. उस ओर
जो अनदेखा है , अन्जाना है
शायद तुमको मिल जाये।

3 टिप्‍पणियां:

  1. आनंद जी,
    ये सूनापन और रीतापन कब नहीं था जीवन में? जबरन भुलाये रहते हैं हम सब इसे, कोई किसी बहाने से और कोई और किसी दूसरे बहाने से।
    सही कहा, कि निकल पड़ना - यही उचित है। निकल पड़ो बस, और कुछ मिले न मिले रास्ते में नये हमराही, नये हमसफ़र और नये अनुभव तो मिलेंगे ही। अच्छी पंक्तियां लगीं। बुरा मत मान जाना, थोड़ी सी टाइपिंग की या वर्तनी की गलतियां हैं, उधेलित = उद्वेलित,
    जनता = जानता, अधुरा = अधूरा, अन्जाना = अनजाना।

    ईमेल आईडी रहती तो मेल करता(मतलब गलती जरूर निकालता, हा हा हा) बुरा लगे तो डिलीट कर देना। नई नई जान पहचान है अपनी, मैं समझ जाऊंगा।
    पोस्ट बहुत पसंद आई, इसीलिये गलतियों की तरह ध्यान गया है।
    और हाँ, हैडर में भी तारिक को तारीख कर लेंगे तो अच्छा लगेगा।

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  2. sanjay ji shukriya... bilkul bura nahi laga..aap jaise mitra jeevan mein kaam ke hote hain.. .. aage se dhyan rakhunga.. hindi typing nahi aati.. aur yahan sahi karta hoon to bahut waqt lag jata hai.. vaise bhi hum creative writers galtiyan thik karne ka kaam apne proof reader ke hawale kar dete hain.. hindi se prem hai ..koshish karunga aage se ..

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  3. आनंद जी, अच्छा लगा कि आपने इसे खिंचाई नहीं माना। मैंने सुधारे गये शब्द सिर्फ़ इसलिये लिखे थे ताकि कापी करके ऐडिट करने में आसानी हो। फ़िर से कहता हूँ, अच्छी चीज में कमी ज्यादा खटकती है, सिर्फ़ यही सोचकर लिखा था। हममें से कोई भी परफ़ैक्ट नहीं है, मुझे भी मेरे साथियों ने ऐसे ही गलतियों से सबक सीखना सिखाया है। हिंदी से प्रेम बना रहे आपका, हमें रचनायें पढ़ने को मिलती रहें, और क्या चाहेंगे भला। शुभकामनायें। thanks again.

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