शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2010

फैसला

सपने कुछ अपने थे , कुछ अपनों के
हर सपना दुसरे के सपने की कुर्बानी मांगता था
मुझे फैसला करना था , किसका सम्मान करूँ ?
अपनी कोमल पाक ,तेरा मेरा से परे ज़ज्बातों का ?
या मान मर्यादा में , स्वार्थ में लिपटे उनके अरमानो का?

7 टिप्‍पणियां:

  1. फैसला तो आपको ही करना है उम्मीद है सही फैसला करेंगे

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  2. हर सवाल अपने साथ जवाब लेके पैदा होता है. ये और बात है ...सवाल शरीर की तरह दिखाई देता है और जवाब आत्मा की तरह दिखाई नहीं देता...
    रूह जब रौशन होगी , आसमां भी सुन लेगा फैसला मेरा ..
    बस हर जवाब से है एक कदम का फासला मेरा.

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  3. जवाब के बारे में कमेंट में पोस्ट से भी ज्यादा शानदार लिखा है आपने आनंद जी, शुभकामनायें ऐसे हौंसले रखने के लिये।

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  4. ऐसी हालत में हम वही फैसला मंजूर कर लेते है जिसमे हमे कम पश्चात्ताप हो. मैं तो ऐसा ही करती हूँ. कभी-कभी तो सोचती हूँ कि हम भी वही फैसला चाहते हैं और मानते भी है. बस ऊपर से ये दिखावा कि मेरे पास और कोई चारा नहीं था, यह मुझे बिलकुल बकवास लगती है. अगर हम चाहे तो हम सही फैसला ले सकते है, मगर तभी जब हम चाहे तो!

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  5. faisla is kavita mein sirf chahat se nahi hai... baat kurbani ki bhi ho rahi... hum vahi karte hain ya karna chahte hain jo hum chahte hain..lekin qurbani ka sawal faisla lene ki kashmash mein daal deta hai..

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