Akela Hi Sahi
मंगलवार, 24 अगस्त 2010
जेबें उनकी भरी हुयी थी , दिल खाली थे।
दरिया जैसे दीखते थे, लेकिन नाली थे।
उजड़े हुए बागों ने अपनी सुनाई दास्ताँ ।
वीरान करने वाले उनके माली थे ।
2 टिप्पणियां:
राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh)
24 अगस्त 2010 को 9:09 am बजे
बहुत सुन्दर अशआर
ब्रह्मांड
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संगीता पुरी
24 अगस्त 2010 को 9:56 am बजे
अच्छी रचना !!
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बहुत सुन्दर अशआर
जवाब देंहटाएंब्रह्मांड
अच्छी रचना !!
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