मंगलवार, 24 अगस्त 2010

साहित्य का हाल

रेडियो पे चिलाता रेडियो जोकी, कविता को डरा के भगा देता है।
रंगीन टीवी पर कम कपड़े पहने इतराती हेरोइन, कविता को अलमारी के कोने में दबा देती है।

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