शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

सब देख रहा हूँ

जो जैसा कर रहा है सब देख रहा हूँ।
किसकी नज़र में क्या है सब देख रहा हूँ।

वो हंस के बोलते हैं, ज़हर भी घोलते हैं।
उनके इरादे क्या हैं सब देख रहा हूँ।

पलकों पे कहीं ख्वाब सजते देख रहा हूँ।
आँखों में उमड़ते आंसू सब देख रहा हूँ।

बहती नदी की धार ,कहीं देख रहा हूँ ।
संजीदगी समंदर की सब देख रहा हूँ।

तेरी नज़र में क्या है , उसकी नज़र में क्या है।
मेरी नज़र में क्या , सब देख रहा हूँ।

कौन जीता है सुबह होने तक

शमा की उम्र होती है सुबह होने तक ।
परवाना जलता है सुबह होने तक।

जी भर के जी ले ज़िन्दगी तू रात भर ।
कौन जीता है सुबह होने तक।

यादों की बुनियाद पे महल न बनाया करो।
टूट जाता है अरमान सुबह होने तक ।

अपने दिल में एक घर सलामत रख लो
मकान नहीं बचते सुबह होने तक ।

शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2010

मेरी आँखों में नमी रही गयी

मेरी आँखों में नमी रही गयी ।
ज़िन्दगी में तेरी कमी रह गयी।
आसमान तो बहुत बर्षा था
जाने क्यूँ बंजर ज़मी रह गयी।
सेहरे के फूल बहुत महंगे थे
बेटी की डोली सजी रह गयी।

जन्म दिन मुबारक हो।


हम मिले , पहचान हुयी , साथ काम किया और सब चले गए , लेकिन हमारा रिश्ता साल दर साल मजबूत होता गया। आपने मुझे जो मुकाम दिया उसके लिए शुक्रिया । जन्म दिन मुबारक हो।

बुधवार, 27 अक्टूबर 2010

हम हैं अगर कल , तो देखो इसी पल भारत का हमको भाविष्य बताओ

ब्लॉग मित्रो से अनुरोध है , की इस गीत को ज़रूर सुने और अपनी राय दें। राजस्थान के एक म्यूजिक डिरेक्टर को मैंने मौका दिया मेरे लिखे इस गीत को काम्पोस करने के लिए । अभी ये फायनल नहीं है और न ही किसी गायक ने गया है। जब सबकुछ फायनल हो जायेगा तो मैं आप सबको बताऊंगा कि ये गीत किसलिए तैयार हो रहा है। बुरा लगे , बुरा कहें, अच्छा लगे अच्छा कहें , लेकिन दिल से कहें मुझे अच्छा लगेगा।

शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2010

फैसला

सपने कुछ अपने थे , कुछ अपनों के
हर सपना दुसरे के सपने की कुर्बानी मांगता था
मुझे फैसला करना था , किसका सम्मान करूँ ?
अपनी कोमल पाक ,तेरा मेरा से परे ज़ज्बातों का ?
या मान मर्यादा में , स्वार्थ में लिपटे उनके अरमानो का?

ये सूनापन ये रीतापन

काम है , आराम है.
थोड़ा नाम है , थोड़ा बदनाम हैं.
वक़्त पे खाना , वक़्त पे सोना
कुछ कम है तो कुछ ज्यादा भी है.
कुछ कर चुके , कुछ करने का इरादा भी है.
डर है , हौसला भी है.
बहुत कुछ पास है , कुछ से फासला भी है
खुशियाँ हैं तो कहीं मातम भी है.
सांस चल रही हैं
ज़िन्दगी बढ़ रही है.
देखता हूँ , लगता है जैसे
जिंदगी जहाँ से चली थी उसी ओर बढ़ रही है.
जब तक दम है ..हम हैं .
सब कुछ होते हुए भी
एक सूनापन , एक रीतापन भी है ।
ये सूनापन पहले असहज कर देता था
फिर उधेलित करने लगा
फिर सोचने पर मजबूर करने लगा
अब सोचता हूँ , तो जानता हूँ
यहाँ कुछ भी पूरा नहीं है , सब अधुरा है
ये सूनापन ये रीतापन एक वजह है
ज़िन्दगी को एक नयी दिशा देने के लिए
ये वो इशारा है जो दिखता है एक रास्ता
जीवन के अंतिम सत्य ,मृत्यु का
निर्वाण का , मोक्ष का .
ये सूनापन ..ये रीतापन जब आये जीवन में
तुम भी सोचना , और निकल पड़ना
एक नयी राह पर .. उस ओर
जो अनदेखा है , अन्जाना है
शायद तुमको मिल जाये।

बुधवार, 20 अक्टूबर 2010

मुझे ये याद रहता है जो मुझको भूल जाना है।

काश भूलना आसान होता
जब भी कोशिश करता हूँ ,
मुझे ये याद रहता है जो मुझको भूल जाना है।

सोमवार, 18 अक्टूबर 2010

प्रेमचंद कौन है ? उसका बायोडाटा लाओ.


प्रेमचंद कौन है ? उसका बायोडाटा लाओ.

सिगरेट का झल्ला उड़ाती . ब्रांडेड इतर में महकती , लहराती हुयी वो आती है , अंग्रेजी बोलती है ऐसे जैसे हिंदुस्तान से उसका कुछ लेने देना नहीं है. .. माहोल को खुशनुमा और आरामदेह कैसे बनाना है उसे बहुत अच्छे से आता है... साथ ही अपना रुतबा कैसे दिखाना है वो बखूबी जानती है... और आपको ये बताना नहीं भूलती की उसने बड़ी मुश्किल से वक़्त निकला है... सारी दुनिया का काम उसी के ऊपर है. नपे तुले शब्दों और बीच बीच में मजाक करते हुए आपको छोटा दिखाने में उसे महारत हासिल है. ..बड़े से बड़े आत्मविश्वासी को चित करना उसके बाएं हाथ का खेल है... अपनी कजरारी आँखों से एक बार घूर के देख लेती है ..आपकी नज़रों से नज़रे नहीं हटाती और सामने वाला उसकी हाँ में हाँ मिलाये जाता है...दिमाग और दिल को गुलाम बना लेने में माहिर खिलाडी है वो...

उसके हाथ में हिंदुस्तान की जनता को क्या देखना चाहिए और क्या नहीं...इतना बड़ा फैसला लेना का अधिकार है... ये विदेशी चैनल में बैठी एक हिन्दुस्तानी लड़की है ... जिसे कंटेंट हेड के नाम से लोग जानते हैं ... आज मिस्टर एक्स वाई जेड , एक बेहतरीन लेखक है , उनकी इस लड़की के साथ मीटिंग है... थोड़ी बहुत इधर उधर की बातें और फिर लड़की पूछती है , कहानी क्या है... ? कहानी सुनानी अंग्रेजी में है ..बनेगी हिंदी में ... मिस्टर एक्स वाई जेड कहानी सुनाते हैं .. बीच बीच में वो बोलती जाती है.. उसे कहानी बहुत अच्छी नहीं लग रही ..क्यूंकि उसे चाहिए कुछ हटके ... चाहे नाटक की नायिका की पच्चास शादियाँ क्यूँ न दिखानी हो... अचानक वो बीच में कुछ बोल पड़ती है , लेखक समझ जाता है और अपनी कहानी का वजन बढ़ाने के लिए बोल पड़ता है... वो जनता है , कहानी बेचने के लिए क्या ट्रिक इस्तेमाल करनी है...वो बोलता है.. मैडम हमारी कहानी , प्रेमचंद की कहानी से इंस्पायर है... लड़की एक दम से उन्हें रोक देती है... उन्हें समझ नहीं आता क्यूँ? मैं बताता हूँ ... वो बोलती है , कि ये प्रेमचंद कौन है? लेखक कुछ बोले कि वो बोलती है उसका बायोडाटा लाओ... लेखक अवाक रह जाता है .. लेकिन बोलता नहीं... वो बोलती है ... टेल मी हु इज प्रेमचंद? लेखक - वो हमारे देश के महान उपन्यासकार हैं... कहानी सम्राट हैं... लड़की ..ओह आई सी ... आप उसका बायोडाटा लगा दो... प्रोजेक्ट उम्दा हो जायेगा... लेखक अपनी दाल रोटी चलाने के चक्कर में चुप है , लेकिन इतना भी गिरा नहीं है की वो प्रेमचंद का अपमान सहता ..उठ जाता है .. और बस दो टुक बोलता है ... माफ़ करना ये कहानी आपके चैनल के लिए बेकार है.... लड़की को अच्छा नहीं लगता... उसकी अदाएं जाहिर करती हैं , कि आपकी एंट्री इस चैनल में बंद समझिये...लेखक उठ कर चला जाता है...

सेट पर शूटिंग चल रही है... बाईस साल कि एक सुन्दर सी लड़की सेट पर आती है.. डिरेक्टर को बुलाती है... दोनों हाथ मिलाते हैं... लड़की शूटिंग का हाल चाल पूछते हुए सिगरेट जला लेती है... शुद्ध अंग्रेजी में बोलती है... आपको सीन समझ में आ गए हैं न... ? डिरेक्टर हाँ में जवाब देता है.. लड़की बोलती है... हेरोइन और हीरो के कपडे के बारे में... सेट के पर्दों और फर्नीचर के रंगों के बारे में .डिरेक्टर का दिमाग चकरा रहा है... कहानी , सीन में क्या होगा उस से उसे कुछ लेना देना नहीं है..और वो आई है सीन समझाने के लिए .. हाँ हाँ करता हुआ डिरेक्टर उसके जाने का इंतज़ार करता है ..लेकिन वो बैठ जाती है...सीन शुरू होता है... डिरेक्टर के कट बोलने से पहले ही वो कट बोल देती है... इसलिए कि लड़की के हेयर स्टाइल ठीक नहीं है... डिरेक्टर अन्दर जाता है... अपने बैग से शराब कि एक बोतल निकलता है , निगलता है.. अपने असिस्टेंट को बुलाता है.. उसे गलियां देता है... और फिर शूटिंग शुरू हो जाती है...

करोडो रुपये कि छतरी लगा कर ..देश में धंदा करने वाले चैनल में ऐसे लोग काम करते हैं... जिन्हें हिंदी कि समझ नहीं , वो हिंदी का नाटक बनाते हैं... ये निर्धारित करते हैं कि हिंदी भाषा बोलने वाली जनता को क्या दिखाना है.. जिन्हें पता नहीं भारतीय संस्कृति क्या है , वो हमे बताते हैं कि हमे क्या देखना है... प्रेमचंद का बायोडाटा मांगने वाली लड़की चैनल का कंटेंट डिसाईड करती है ... मीडिया एक बहुत ताकतवर माध्यम है और उस पर ऐसे ही लोगों का कब्ज़ा है ..अब आप समझ सकते हैं .. हमारे समाज कि थाली में क्या परोसा जायेगा...इसका असर दिखने में वक़्त नहीं लगता... ज़रा संभल के... टी आर पी के चक्कर में तो हद्द ही हो गयी है... न्यूज़ चैनल का तो और भी बुरा हाल है... ये रिपोर्टिंग कि जगह review ज्यादा करते हैं और वो भी टी आर पी दिमाग में रख कर...उन्हें इस से कोई सरोकार नहीं उनकी खबर का क्या होगा असर...

सच कहूँ .. अगर एक सिरफिरा कहे कि मुझे एक atom बोम्ब दे दो मैं देश को गुलाम बना दूंगा ..मैं नहीं मानुगा... लेकिन कोई सिरफिरा कहे कि मुझे अपने देश का मीडिया दे दो... तो मुझे कोई शक नहीं , कि देश को गुलाम बनाने , देश को युद्ध के दलदल में ले जाने में उसे ज़रा भी परेशानी नहीं होगी... हमारी सोच पर कब्ज़ा करती है ये मीडिया ... और सोच गुलाम हुयी तो कुछ भी हो सकता है...

प्रेमचंद का बायोडाटा मांगने वाली , और हिंदी कहानी में सिर्फ कपड़ो का रंग देखने वाली लड़कियों से सावधान .... देश भक्ति के नाम पर , कभी भावनायों के नाम पर आपको गुमराह करने वाले न्यूज़ चैनल से सावधान ... इन पर लगाम नहीं लगायी गयी तो ...आप सोचते रहिये...आपका बच्चा कल लय गुल खिलायेगा...

रविवार, 17 अक्टूबर 2010

आप सबको विजयदशमी की शुभकामनाये ...



आप सबको विजयदशमी की शुभकामनाये ...

मर्यादा पुरोषोत्तम श्री राम ने आज ब्रहमज्ञानी तेजस्वी त्रिलोक विजयी महाप्रतापी रावण के अहंकार और उसके भीतर के राक्षस का वध किया था. मुझे लगता है हमे भी रावण दहन और उस महा पंडित के विनाश को इसी रूप में लेना चाहिए. हर इन्सान के अन्दर एक रावण है , एक अहंकारी दानव है. एक अत्याचारी है . जिसका दमन हमे स्वयम करना चाहिए.
ये तस्वीर जो मैंने लगायी है , ये कालोनी के हर तबके के बच्चे के प्रयास , प्रेम और सदभावना का प्रतिक है . इन बच्चों ने खुद मिलकर इसे बनाया है. कौन किस जात का है, आमिर है गरीब है , उसका क्या मजहब है इन्हें नहीं पता. इन्हें रावण बनाने से मतलब है. साथ बैठ कर खुशियाँ मनाने से मतलब है. इन बच्चों ने मिलकर अपने नन्हे हाथों से ये रावण का पुतला बनाया है. इनके साथ एक तश्वीर मैं भी खीचना चाहता हूँ..आज शाम ज़रूर जाऊंगा . ये असली हीरो हैं ..और हमारी उमीद हैं. इनका प्यार , इनका प्रयास , इनकी सदभावना हम बड़े लोगों को ठेंगा दिखाती है , जात पात पे लड़ने वालो को जीभ चिडाती है.

शनिवार, 16 अक्टूबर 2010

मुबारक हो


मेरे उप-सहायक परवीन (तस्वीर में जो लड़का नोट बुक लिए खड़ा है ) अभी खबर आई है, कि उसे फिल्म डिरेक्ट करने के लिए मिल गयी है। बहुत ख़ुशी हुयी । मुबारक हो परवीन ।

तेरा मेरा कैसा रिश्ता

तेरा मेरा कैसा रिश्ता
बहती - बहती सरिता जैसा ।
रस्ते -रस्ते साथ रहा पर
कभी न ठहरा दरिया जैसा ।

हर बार तुझे मिटाता हूँ, हर बार तू बन जाती है।

तुझको बनाना भी मुश्किल था , मिटाना भी मुश्किल है।
हर बार तुझे मिटाता हूँ, हर बार तू बन जाती है।

शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010

फूल नहीं हूँ खुशबू हूँ मैं।
आँधियों से कह दो औकात में रहें।

दर्द की फसल

उग आई है दर्द की फसल
लगेगी उन पे अब अच्छी ग़ज़ल ।

मचलते हुए आंसू हँसेंगे
अब दिल जायेगा बहल।

बंद कर कमरा आनंद
सारी दुनिया में टहल।

कहो आनंद

कहो कहाँ घुमने गए थे आनंद ।
कौन सी मंजिल चूमने गए थे आनंद।

डूबे हैं तुम्हारी थाह में कितने।
तुम कौन से सागर में डूबने गए थे आनंद।

आज में बैठे बैठे कल और परसों ।
क्या उसके दर भी घुमने गए थे आनंद।

दिन का उजाला भर के अँधेरी रात में
कौन सा ख्वाब ढूंढने गए थे आनंद।

बुधवार, 13 अक्टूबर 2010

सोमवार, 11 अक्टूबर 2010

उफ़… ये मजहब …क्या फ़ायदा इसका जो इंसान को इंसान नहीं रहने देता… राम वाला अल्लाह नहीं कहने देता..अल्लाह वाला राम नहीं कहने देता… अजब मजहब है इंसान को इंसान नहीं रहने देता…

शनिवार, 9 अक्टूबर 2010

प्रेम प्याला

प्याले प्रेम के पी लो , मैं बेमोल देता हूँ।
लुटता हूँ हंसी और आंसूं मोल लेता हूँ।

बहुत कडवी हो जाती है ज़िन्दगी जब उजालो में
मैं चुपके से उस में अँधेरा घोल देता हूँ।

बंद होते ही दुनिया के सारे दरवाज़े
मैं अपने घर के दरवाज़े- खिड़की खोल देता हूँ।

मेरे खामोश रहने की वजह है बड़ी यारो
बड़ा बवाल होता है, मैं जो सच बोल देता हूँ।

हर हाल में दिल मेरा एक सा ही रहता है
ख़ुशी गम को अब एक साथ तौल देता हूँ।

शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010

मेरी पहचान


मुन्ना की अम्मा या बंटी की मम्मी

रामदीन की लुगाई या mrs शर्मा

पंडितजी की बहु या बिज़नस tycoon कपूर साहब की daughter in-law.

किसी की बहन

किसी की बेटी

किसी की बीवी

किसी की माँ

सोचती हूँ कहाँ है मेरी पहचान ...?

कहीं चूल्हे चाकी में दिन गुजारती हूँ

और कहीं ..vacuum cleaner और washing machine में

साड़ी से निकल कर पतलून भी पहन ली

लेकिन क्या अपने वजूद से लिपटी उस पुरानी सोच को उतार पायीं हूँ?

जो मुझे मेरी खुद की पहचान नहीं बनाने देता ....?

गुडिया आजा ..बिटिया आजा .. बहु आजा

बासी -बासी सी ज़िन्दगी ... न कोई उमंग ..न कोई ताज़गी ...

शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010

अमन में मेरा हिंदुस्तान रहे

इस देश में जब जिसके हाथ ताक़त आई उसने राज किया । ये सिर्फ हमारे देश की कहानी नहीं है , सारी दुनिया का यही इतिहास है। अयोध्या में मंदिर था या मस्जिद था , कब क्या था , कोई दावे से कह नहीं सकता। किसी के पास कोई सबूत नहीं है। लेकिन इतिहास में मैंने तो आज तक ऐसा नहीं पढ़ा की किसी हिन्दू ने मस्जिद पे कब्ज़ा किया हो। या उसे गिरा कर मंदिर बना दिया हो। इतिहास में मैंने ये ज़रूर पढ़ा है की मुग़ल शाशकों ने ये घिनोना काम किया। मेरे यह कहने का मतलब कतई नहीं है की मैं ये कह रहा हूँ , की वहां मंदिर गिरा कर मस्जिद बनाया गया। या मस्जिद गिरा कर मंदिर बनाने की कोशिश हुयी। सिर्फ ये कहना चाहता हूँ , की किसी को कुछ पता नहीं। कोई ये साबित भी नहीं कर पाया। और अगर हम में से किसी को लगता है , कि अमन के लिए फैसला इन्साफ नहीं , तो ये सच है। लेकिन हम कह भर सकते हैं, क्यूंकि हम कहने वालों के पास भी कोई पका सबूत नहीं है। इस में कोई दो राय नहीं है कि , फैसला इन्साफ नहीं था, एक समझौता है। अमन के नाम पर। इस में न्याय कि जीत नहीं हुयी। इस फैसले से देश में अमन बनाये रखने में कामयाबी मिली। न्यायपालिका ने एक अच्छा फैसला लिया , जो देश कि शान्ति के लिए ज़रूरी था, लेकिन ध्यान रखना होगा , कि और मामलो में ऐसे फासले न दिए जाएँ। ये कानून कि हार होगी।

वैसे मैं अयोध्या मामले और ऐसे मंदिर मस्जिद के नाम पर होने वाले झगड़ों के लिए बस इतना कहूँगा और पूछुंगा कि आप क्या सोचते हैं?

अमन में मेरा हिंदुस्तान रहे

ना राम रहे न अलाह रहे।
जिनको रखना हो , वो अपने दिल में अपना भगवान रखें।
ये धरती है इंसानों की, यहाँ सिर्फ इन्सान रहे।
प्रेम का मजहब रहे।
अमन में मेरा हिंदुस्तान रहे।

१९९२ से न तो वहां मंदिर हैं, न वहां मस्जिद है। हिंदुस्तान की अवाम को कोई फर्क नहीं पड़ा। इस दुनिया में अगर कहीं मंदिर , मस्जिद, गुरद्वारा, गिरजा घर न हो , तब भी इन्सान को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। फर्क तब पड़ता है, जब अमन चला जाता है। जब नफरत की हवा जहर घोलती है। गरीबों का खुदा एक रोटी में बंद हैउसकी मेहनत मजदूरी उसकी पूजा हैशाम को घर में जलता चूल्हा उसका हवन हैऔर उसके बच्चों के मुह में जाने वाला निवाला उसका प्रसाद हैकहीं मंदिर हो या हो, कहीं मस्जिद हो या होउसे कोई फर्क नहीं पड़ता

ढह जाएँ जब मासूमो के घर , तब मंदिर की नीव पड़े ।
माँ का दूध सूख जाए तब ईद की खीर बने ।

ऐसे मंदिर मस्जिद नहीं चाहिए हम इंसानों को ।