शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

मेरी पहचान


मुन्ना की अम्मा या बंटी की मम्मी

रामदीन की लुगाई या mrs शर्मा

पंडितजी की बहु या बिज़नस tycoon कपूर साहब की daughter in-law.

किसी की बहन

किसी की बेटी

किसी की बीवी

किसी की माँ

सोचती हूँ कहाँ है मेरी पहचान ...?

कहीं चूल्हे चाकी में दिन गुजारती हूँ

और कहीं ..vacuum cleaner और washing machine में

साड़ी से निकल कर पतलून भी पहन ली

लेकिन क्या अपने वजूद से लिपटी उस पुरानी सोच को उतार पायीं हूँ?

जो मुझे मेरी खुद की पहचान नहीं बनाने देता ....?

गुडिया आजा ..बिटिया आजा .. बहु आजा

बासी -बासी सी ज़िन्दगी ... न कोई उमंग ..न कोई ताज़गी ...

4 टिप्‍पणियां:

  1. आज भी स्त्री की अपनी कोई पहचान नहीं ...हाँ कुछ स्वयं की पहचान बना पायीं हैं ..पर वो उँगलियों पर गिने जाने लायक हैं ...अच्छी प्रस्तुति

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  2. Hum khud hi pehchaan bana ki zidd nahi karte.. sachchi kavita... aur gehri bhi...
    thnx for ur positive words...

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  3. sangeeta didi ki baton se sahmat hun mai bhi.....
    aaj bhi ek chunauti khadi hai nari ke pahchan ke liye .............

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